Kabeer

सपने

बादल के एक कोने में, पलकों को अपनी मूँद, अपनी बारी का इंतज़ार करती , थी मैं एक छोटी सी बूँद. जा मिलना था मुझे उस गिरती बारिश के साथ, पहुँचना था धरा, करनी थी सपनों से बात. घूमना था ख़ानाबदोश सा मुझे, बनके नदिया का पानी, या फिर सागर के तल जा, सुलझानी थी …