वार्ता (धरती और पंछी के मध्य )
उड़ता हुआ परिंदा हूँ किसकी मुझे तलाश है ओज लिया है सीने में उड़ने को सारा आकाश है किया जीवन में कुछ की नहीं अनसुलझी, अनकही अद्भुत ये जो प्यास है उड़ता हुआ परिंदा हूँ किसकी मुझे तलाश है निकला एक दिन नीड से बातें करता बादलों की भीड़ से जिंदगी की जुस्तजू से हार …