जिंदगी में कई बार बहुत सी बातें अनकही रह जाती हैं, वो भी उन लोगों से … जिनसे आप शायद अपनी हर बात बयाँ करते हैं
कॉलेज के सफ़र के इन दिनों में शायद आपके साथ भी कई बार ऐसा हुआ होगा कि दोस्तों के साथ बातें ख़त्म होने का नाम ही नहीं लेती …पर फिर भी कुछ तो रह जाता है …
अब वो अनकही बात क्या है ये तो आप ही जानें…..पर अगर कुछ है… तो इन चंद पंक्तियों को पढकर शायद आपको भी कुछ याद ज़रूर आएगा …..
अश्क गिर जाते हैं ज़मीं पर
फिर भी ये ज़ुबां चुप रहती है
किसी के लफ़्ज़ों में वो बात नहीं
जाने ये ऑंखें क्या कहती हैं??
वो अनकही सी ख्वाहिशें
वो कह्कही फरमाइशें
वो उनका रूठना मनाना
वो बिना हँसे बस मुस्कुराना
बिन बात के बिगड़ना बिन बात के अकड़ना
बिन बात के झगड़ना, और फिर कहना …
कि न…..अब हमसे न बतियाना
फिर बात को बदलना, बातें हज़ार करना
वो याददाश्त का जाना ,
और फिर समय का याद आना
उनका अलविदा यूँ कहना ,
फिर एक आवाज़ का आना ,कि अरे यार …
थोड़ी देर और रुक जा ना…
लीजिये…. फिर सिलसिला बातों का यूँ उमड़ आना
और देखते ही देखते रात का यूँ ढल जाना
यूँ ही कहते कहाते, सुनते सुनाते
अश्क गिर जाते हैं ज़मीं पर
फिर भी ये ज़ुबां चुप रह जाती है
किसी के लफ़्ज़ों में वो बात नहीं
जो ये ऑंखें चुपके से कह जाती हैं