आ चल ज़रा कुछ घूम के आयें
चाय के प्याले के संग कुछ बातें कर आयें
आज काम का मूड नहीं कुछ, चाय पी शायद बन जाये
ऐसे ही कुछ जुड़े जब दोस्त बन गए चाय के साथी।
घूंट घूंट चाय के संग घंटो बतियाना इधर उधर की
सच में थोडा झूठ मिला कर हंसी उड़ाना प्रोफेसर की.
चाय कि उस प्याली से घूँट घूँट लम्हा पीते
और गर्म धुंए के छल्लों में बातों के गुलदस्ते बनते
गुलदस्तों में और जुड़े कुछ फूल बन गए चाय के साथी
चाय का पीना है या कोई सागर का मंथन
छोटी सी प्याली से कटता कितने ही घंटों का जीवन
कितनों कि तो थीसिस ही इस प्याली के संग बनती है
कितनों को तो ख्वाबो में ही पोस्ट डॉक भी मिलती है
इन्हीं ख्वाब में और जुड़े कुछ ख्वाब बन गए चाय के साथी
चाय है बस एक बहाना कुछ मन कि बातें कहने का
अपनों से जुड़कर रहने सपनो को बुनते रहने का
पूरब से लेकर पश्चिम तक उत्तर से लेकर दक्षिण तक
ये चाय जोड़ती है भारत को,
इसी कड़ी में हमसे भी कुछ और जुड़े जब दोस्त, बन गए चाय के साथी।
- सुधांशु शर्मा (अमृत)
अच्छा लिखा है , नया दृष्टिकोण है